सबसे बड़ा गरीब….

एक महात्मा भ्रमण करते हुए नगर में से जा रहे थे। मार्ग में उन्हें एक रुपया मिला। महात्मा तो विरक्त और संतोषी व्यक्ति थे। वे भला उसका क्या करते? अतः उन्होंने किसी दरिद्र को यह रुपया देने का विचार किया। कई दिन तक वे तलाश करते रहे, लेकिन उन्हें कोई दरिद्र नहीं मिला।

एक दिन उन्होंने देखा कि एक राजा अपनी सेना सहित दूसरे राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा है। साधु ने वह रुपया राजा के ऊपर फेंक दिया। इस पर राजा को नाराजगी भी हुई और आश्चर्य भी। क्योंकि, रुपया एक साधु ने फेंका था इसलिए उसने साधु से ऐसा करने का कारण पूछा।

साधु ने धैर्य के साथ कहा- ‘राजन्! मैंने एक रुपया पाया, उसे किसी दरिद्र को देने का निश्चय किया। लेकिन मुझे तुम्हारे बराबर कोई दरिद्र व्यक्ति नहीं मिला, क्योंकि जो इतने बड़े राज्य का अधिपति होकर भी दूसरे राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा हो और इसके लिए युद्ध में अपार संहार करने को उद्यत हो रहा हो, उससे ज्यादा दरिद्र कौन होगा?’

राजा का क्रोध शान्त हुआ और अपनी भूल पर पश्चात्ताप करते हुए उसने वापिस अपने देश को प्रस्थान किया।

प्रेरणाः- हमें सदैव संतोषी वृत्ति रखनी चाहिए। संतोषी व्यक्ति को अपने पास जो साधन होते हैं, वे ही पर्याप्त लगते हैं। उसे और अधिक की भूख नहीं सताती।

हमारे जमाने में मोबाइल नही थे…..

​चश्मा साफ़ करते हुए उस बुज़ुर्ग ने 

अपनी पत्नी से कहा : हमारे ज़माने में

मोबाइल नहीं थे..


*पत्नी* : पर ठीक पाँच बजकर पचपन

मिनट पर मैं पानी का ग्लास लेकर

दरवाज़े पे आती और आप आ पहुँचते..
*पति* : हाँ मैंने तीस साल नौकरी की

पर आज तक मैं ये नहीं समझ

पाया कि मैं आता इसलिए तुम

पानी लाती थी या तुम पानी लेकर

आती थी इसलिये मैं आता था..
*पत्नी* : हाँ.. और याद है.. तुम्हारे

रिटायर होने से पहले जब तुम्हें

डायबीटीज़ नहीं थी और मैं तुम्हारी

मनपसन्द खीर बनाती तब तुम कहते

कि आज दोपहर में ही ख़याल आया

कि खीर खाने को मिल जाए तो मज़ा

आ जाए..
*पति* : हाँ.. सच में.. ऑफ़िस से

निकलते वक़्त जो भी सोचता, घर पर

आकर देखता कि तुमने वही बनाया है..
*पत्नी* : और तुम्हें याद है जब पहली

डिलीवरी के वक़्त मैं मैके गई थी और

जब दर्द शुरु हुआ मुझे लगा काश..

तुम मेरे पास होते.. और घंटे भर में तो

जैसे कोई ख़्वाब हो, तुम मेरे पास थे..
*पति* : हाँ.. उस दिन यूँ ही ख़याल

आया कि ज़रा देख लूँ तुम्हें !!
*पत्नी* : और जब तुम मेरी आँखों में

आँखें डाल कर कविता की दो लाइनें बोलते..
*पति* : हाँ और तुम शर्मा के पलकें झुका

देती और मैं उसे कविता की ‘लाइक’ समझता !!
*पत्नी* : और हाँ जब दोपहर को चाय

बनाते वक़्त मैं थोड़ा जल गई थी और

उसी शाम तुम बर्नोल की ट्यूब अपनी

ज़ेब से निकाल कर बोले, इसे अलमारी

में रख दो..
*पति* : हाँ.. पिछले दिन ही मैंने देखा था

कि ट्यूब ख़त्म हो गई है,पता नहीं कब

ज़रूरत पड़ जाए, यही सोच कर मैं

ट्यूब ले आया था !!
*पत्नी* : तुम कहते आज ऑफ़िस के

बाद तुम वहीं आ जाना सिनेमा देखेंगे

और खाना भी बाहर खा लेंगे..
*पति* : और जब तुम आती तो जो

मैंने सोच रखा हो तुम वही साड़ी

पहन कर आती..
फिर नज़दीक जा कर उसका हाथ

थाम कर कहा : हाँ हमारे ज़माने में

मोबाइल नहीं थे..
पर..
“हम दोनों थे !!”
*पत्नी* : आज बेटा और उसकी बहू

साथ तो होते हैं पर..

बातें नहीं व्हाट्सएप होता है..

लगाव नहीं टैग होता है..

केमिस्ट्री नहीं कमेन्ट होता है..

लव नहीं लाइक होता है..

मीठी नोकझोंक नहीं अनफ़्रेन्ड होता है..
उन्हें बच्चे नहीं कैन्डीक्रश सागा,

टैम्पल रन और सबवे सर्फ़र्स चाहिए..
*पति* : छोड़ो ये सब बातें..

हम अब वायब्रंट मोड पे हैं

हमारी बैटरी भी 1 लाइन पे है..
अरे..!! कहाँ चली..?
*पत्नी* : चाय बनाने..
*पति* : अरे मैं कहने ही वाला था

कि चाय बना दो ना..
*पत्नी* : पता है.. मैं अभी भी कवरेज

में हूँ और मैसेज भी आते हैं..
दोनों हँस पड़े..
*पति* : हाँ हमारे ज़माने में

मोबाइल नहीं थे..!!
😊🙏😊🙏😊🙏😊🙏

To every lovely couple.

 meri माँ……

एक बार इस कविता को दिल से पढ़िये

                शब्द शब्द में गहराई है…


⛺जब आंख खुली तो अम्‍मा की

⛺गोदी का एक सहारा था

⛺उसका नन्‍हा सा आंचल मुझको

⛺भूमण्‍डल से प्‍यारा था
🌹उसके चेहरे की झलक देख

🌹चेहरा फूलों सा खिलता था

🌹उसके स्‍तन की एक बूंद से

🌹मुझको जीवन मिलता था
👄हाथों से बालों को नोंचा

👄पैरों से खूब प्रहार किया

👄फिर भी उस मां ने पुचकारा

👄हमको जी भर के प्‍यार किया
🌹मैं उसका राजा बेटा था

🌹वो आंख का तारा कहती थी

🌹मैं बनूं बुढापे में उसका

🌹बस एक सहारा कहती थी
🌂उंगली को पकड. चलाया था

🌂पढने विद्यालय भेजा था

🌂मेरी नादानी को भी निज

🌂अन्‍तर में सदा सहेजा था
🌹मेरे सारे प्रश्‍नों का वो

🌹फौरन जवाब बन जाती थी

🌹मेरी राहों के कांटे चुन

🌹वो खुद गुलाब बन जाती थी
👓मैं बडा हुआ तो कॉलेज से

👓इक रोग प्‍यार का ले आया

👓जिस दिल में मां की मूरत थी

👓वो रामकली को दे आया
🌹शादी की पति से बाप बना

🌹अपने रिश्‍तों में झूल गया

🌹अब करवाचौथ मनाता हूं

🌹मां की ममता को भूल गया
☝हम भूल गये उसकी ममता

☝मेरे जीवन की थाती थी

☝हम भूल गये अपना जीवन

☝वो अमृत वाली छाती थी
🌹हम भूल गये वो खुद भूखी

🌹रह करके हमें खिलाती थी

🌹हमको सूखा बिस्‍तर देकर

🌹खुद गीले में सो जाती थी
💻हम भूल गये उसने ही

💻होठों को भाषा सिखलायी थी

💻मेरी नीदों के लिए रात भर

💻उसने लोरी गायी थी
🌹हम भूल गये हर गलती पर

🌹उसने डांटा समझाया था

🌹बच जाउं बुरी नजर से

🌹काला टीका सदा लगाया था
🏯हम बडे हुए तो ममता वाले

🏯सारे बन्‍धन तोड. आए

🏯बंगले में कुत्‍ते पाल लिए

🏯मां को वृद्धाश्रम छोड आए
🌹उसके सपनों का महल गिरा कर

🌹कंकर-कंकर बीन लिए

🌹खुदग़र्जी में उसके सुहाग के

🌹आभूषण तक छीन लिए
👑हम मां को घर के बंटवारे की

👑अभिलाषा तक ले आए

👑उसको पावन मंदिर से

👑गाली की भाषा तक ले आए
🌹मां की ममता को देख मौत भी

🌹आगे से हट जाती है

🌹गर मां अपमानित होती

🌹धरती की छाती फट जाती है
💧घर को पूरा जीवन देकर

💧बेचारी मां क्‍या पाती है

💧रूखा सूखा खा लेती है

💧पानी पीकर सो जाती है
🌹जो मां जैसी देवी घर के

🌹मंदिर में नहीं रख सकते हैं

🌹वो लाखों पुण्‍य भले कर लें

🌹इंसान नहीं बन सकते हैं
✋मां जिसको भी जल दे दे

✋वो पौधा संदल बन जाता है

✋मां के चरणों को छूकर पानी

✋गंगाजल बन जाता है
🌹मां के आंचल ने युगों-युगों से

🌹भगवानों को पाला है

🌹मां के चरणों में जन्‍नत है

🌹गिरिजाघर और शिवाला है

🌹हर घर में मां की पूजा हो

🌹ऐसा संकल्‍प उठाता हूं

🌹मैं दुनियां की हर मां के

🌹चरणों में ये शीश झुकाता हूं…   
     जितना आप अपनी माँ को प्यार करते हैं उतना शेयर

एक रुपया……

एक महात्मा भ्रमण करते हुए किसी नगर से होकर जा रहे थे ।  मार्ग में उन्हें एक रुपया (A rupee) मिला । महात्मा तो वैरागी और संतोष से भरे व्यक्ति थे भला एक रूपये (A rupee) का क्या करते इसलिए उन्होंने यह रुपया किसी दरिद्र को देने का विचार किया कई दिन की तलाश के बाद भी उन्हें कोई दरिद्र व्यक्ति नहीं मिला ।

एक महात्मा भ्रमण करते हुए किसी नगर से होकर जा एक दिन वो अपने दैनिक क्रियाकर्म के लिए सुबह सुबह उठते है तो  क्या देखते है एक राजा अपनी सेना को लेकर दूसरे राज्य पर आक्रमण के लिए उनके आश्रम के सामने से सेना सहित जा रहा है । ऋषि बाहर को आये तो उन्हें देखकर राजा ने अपनी सेना को रुकने का आदेश दिया और खुद आशीर्वाद के लिए ऋषि के पास आकर बोले महात्मन मैं दूसरे राज्य को जीतने के लिए जा रहा हूँ ताकि मेरा राज्य विस्तार हो सके । इसलिए मुझे विजयी होने का आशीर्वाद प्रदान करें ।

इस पर ऋषि ने काफी देर सोचा और सोचने के बाद वो एक रुपया राजा की हथेली में रख दिया । यह देखकर राजा हेरान और नाराज दोनों हुए लेकिन उन्हें इसके पीछे का प्रयोजन काफी देर तक सोचने के बाद भी समझ नहीं आया ।  तो राजा ने महात्मा से इसका कारण पूछा तो महात्मा ने राजा को सहज भाव से जवाब दिया कि राजन कई दिनों पहले मुझे ये एक रुपया आश्रम आते समय मार्ग में मिला था तो मुझे लगा किसी दरिद्र को इसे दे देना चाहिए क्योंकि किसी वैरागी के पास इसके होने का कोई औचित्य नहीं है । बहुत खोजने के बाद भी मुझे कोई दरिद्र व्यक्ति नहीं मिला लेकिन आज तुम्हे देखकर ये ख्याल आया कि तुमसे दरिद्र तो कोई है ही नहीं इस राज्य में जो सब कुछ होने के बाद भी किसी दूसरे बड़े राज्य के लिए भी लालसा रखता है । यही एक कारण है कि मैंने तुम्हे ये एक रुपया दिया है ।

राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने युद्ध का विचार भी त्याग दिया ।

विद्या का सदुपयोग……

एकएक व्यक्ति पशु पक्षियों का व्यापार किया करता था | एक दिन उसे पता लगा कि उसके गुरु को पशु पक्षियों की बोली की समझ है | उसके मन में ये ख्याल आया कि कितना अच्छा हो अगर ये विद्या उसे भी मिल जाये तो उसके लिए भी यह फायदेमंद हो |  वह पहुँच गया अपने गुरु के पास और उनकी खूब सेवा पानी की और उनसे ये विद्या सिखाने के लिए आग्रह किया | व्यक्ति पशु पक्षियों का व्यापार किया करता था | एकगुरु ने उसे वो विद्या सिखा तो दी लेकिन साथ ही उसे चेतावनी भी दी कि अपने लोभ के लिए वो इसका इस्तेमाल नहीं करें अन्यथा उसे इस कुफल भोगना पड़ेगा | व्यक्ति ने हामी भर दी | वो घर आया तो उसने अपने कबूतरों के जोड़े को यह कहते हुए सुना कि मालिक का घोडा दो दिन बाद मरने वाला है इस पर उसने अगले ही दिन घोड़े को अच्छे दाम पर बेच दिया | अब उसे भरोसा होने लगा कि पशु पक्षी एक दूसरे को अच्छे से जानते है |

अगले दिन उसने अपने कुत्ते को यह कहते हुए सुना कि मालिक की मुर्गिया जल्दी ही मर जाएँगी तो उसने बाजार जाकर सारी मुर्गियों को अच्छे दामों पर बेच दिया | और कई दिनों बाद उसने सुना कि शहर की अधिकतर मुर्गियां किसी महामारी की वजह से मर चुकी है वो बड़ा खुश हुआ कि चलो मेरा नुकसान नहीं हुआ |

हद तो तब हो गयी जब उसने एक दिन अपनी बिल्ली को यह कहते हुए सुना कि हमारा मालिक अब तो कुछ ही दिनों का मेहमान है तो उसे पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ लेकिन बाद में अपने गधे को भी उसने वही बात दोहराते हुए सुना तो वो घबरा कर अपने गुरु के पास गया और उनसे बोला कि मेरे अंतिम क्षणों में करने योग्य कोई काम है तो बता दें क्योंकि मेरी मृत्यु निकट है |

इस पर गुरु ने उसे डांटा और कहा कि मूर्ख मेने पहले ही तुझसे कहा था कि अपने हित के लिए इस विद्या का उपयोग मत करना क्योंकि सिद्धियाँ न किसी की हुई है और न किसी की होंगी | इसलिए मेने तुझसे कहा था कि अपने लाभ के लिए और किसी के नुकसान के लिए इनका प्रयोग मत करो |

……दोस्ती……

​ दोस्ती से कीमती कोई जागीर नही होती दोस्ती से खूबसूरत कोई तस्वीर नही होती…..

 दोस्ती यूँ तो कच्चा धागा है मगर इस धागे से मजबूत कोई ज़ंजीर नही होती…..

पप्पू