🎎पिता का दर्द…..

आज पूनम लव मैरिज कर अपने पापा के पास आयी, और अपने पापा से कहने लगी पापा मैंने अपनी पसंद के लड़के से शादी कर ली, उसके पापा बहुत गुस्सें में थे, पर वो बहुत सुलझें शख्स थे,
उसने बस अपनी बेटी से इतना कहा, मेरे घर से निकल जाओं, बेटी ने कहा अभी इनके पास कोई काम नही हैं, हमें रहने दीजिए हम बाद में चलें जाएगें, पर उसके पापा ने एक नही सुनी और उसे घर से बाहर कर दिया………

कुछ साल बित गयें, अब पूनम के पापा नही रहें, और दुर्भाग्यवश जिस लड़के ने पूनम ने शादी की वो भी उसे धोखा देकर भाग गया, पूनम की एक लड़की एक लड़का था, पूनम खुद का एक रेस्टोरेंट चला रही थी, जिससे उसका जीवन यापन हो रहा था………

पूनम को जब ये खबर हुई उसके पापा नही रहें, तो उसने मन में सोचा अच्छा हुआ, मुजे घर से निकाल दिया था, दर_दर की ठोकरें खाने छोड़ दिया, मेरे पति के छोड़ जाने के बाद भी मुजे घर नही बुलाया, मैं तो नही जाऊंगी उनकी अंतिम यात्रा में, पर उसके ताऊ जी ने कहा पूनम हो आऊ, जाने वाला शख्श तो चला गया अब उनसे दुश्मनी कैसी, पूनम ने पहले हाँ ना किया फिर सोचा चलों हो आती हूं, देखू तो जिन्होने मुजे ठुकराया वो मरने के बाद कैसे सुकून पाता हैं……………

पूनम जब अपने पापा के घर आयी तो सब उनकी अंतिम यात्रा की तैयारी कर रहें थें, पर पूनम को उनके मरने का कोई दुख नही था, वो तो बस अपने ताऊजी के कहने पर आयी थी, अब पूनम के पापा अंतिमयात्रा शुरू हुई, सब रो रहें थे पर पूनम दूर खड़ी हुई थी, जैंसे तैसे सब कार्यकम निपट गया, आज पूनम के पापा की तेरहवी थी, उसके ताऊ जी आए और पूनम के हाथ में एक खत देते हुये कहा, ये तुम्हारे पापा ने तुम्हें दिया हैं, हो सके तो इसे पढ़ लेना………….

रात हो चुकी थी सारें मेहमान जा चुके थे, पूनम ने वो खत निकाला और पढ़ने लगी,
उसने सबसे पहले लिखा था, मेरी प्यारी गुड़िया मुजे मालूम हैं, तुम मुजसे नराज हो, पर अपने पापा को माफ कर देना, मैं जानता हूं, तुम्हें मैंने घर से निकाला था, तुम्हारे पास रहने की जगह नही थी, तुम दर_दर की ठोकरे खा रही थी, पर मैं भी उदास था, तुम्हें कैसे बताऊँ,,,,,,

“याद हैं तुम्हें जब तुम पाँच साल की थी, तब तुम्हारी माँ हमें छोड़ के चली गयी थी, तब तुम कितना रोती थी, डरती थी, मेरे बिना सोती नही थी, रातों को उठकर रोती थी, तब मैं भी सारी रात तुम्हारे साथ जागता था, तुम जब स्कूल जाने से डरती थी, तब मैं भी सारा वक्त तुम्हारे स्कूल के खिडकी पर खड़ा होता था, और जैसे ही तुम स्कूल से बाहर आती थी, तुम्हें सीने से लगा लेता था, वो कच्चा_पक्का खाना याद हैं, जो तुम्हें पसंद नही आता था, मैं उसे फेंक कर फिर से तुम्हारे लिए नया बनाता था, की तुम भूखी ना रहों, याद हैं तुम्हें जब तुम्हें बुखार आया था, तो मैं सारा दिन तुम्हारे पास बैठा रहता था, अंदर ही अंदर रोता था, पर तुम्हें हंसाता था, की तुम ना रोओ वरना मैं रो पड़ता था,
वो पहली बार हाईस्कूल की परीक्षा जब तुम रात भर पढ़ती थी, तो मैं सारी रात तुम्हें चाय बनाकर देता था,
याद है तुम्हें जब तुम पहली बार कालेज गयी थी, और तुम्हें लड़को ने छेंड था, तो मैं तुम्हारे साथ कालेज गया और उन बदतमीज लड़को से भीड गया, उम्र हो गयी थी, और मैं कमजोर भी, कुछ चोटे मुजे भी आयी थी, पर हर लड़की की नजर में पापा हीरों होते हैं, इसलिए अपना दर्द सह गया…………….

“याद हैं तुम्हें वो तुम्हारी पहली जीन्स वो छोटे कपड़े, वो गाड़ी, सारी कालोनी एकतरफ थी की ये सब नही चलेगा, लड़की छोटे कपड़े नही पहनेगी, पर मैं तुम्हारे साथ खड़ा था, किसी को तुम्हारी खुशी में बाधा बनने नही दिया, तुम्हारा वो रातों को देर से आना कभी_कभी शराब पीना, डिस्को जाना, लड़को के साथ घूमना, इन सब बातों को कभी मैंने गौर नही किया, क्यूकि जिस उम्र में थी उस उम्र मे ये सब थोड़ा बहुत होता हैं, ………………….

पर एक दिन तुम एक लड़के से शादी कर आयी, वो भी उस लड़के से जिसके बारे में तुम्हें कुछ भी पता नही था, तुम्हारा पापा हूं, मैंने उस लड़के के बारे मे सब पता किया, उसने ना जाने वासना और पैंसे के लिए कितनी लड़कियों को धोखा दिया, पर तुम तो उस वक्त प्रेम में अंधी थी, तुमने एक बार भी मुजसे नही पूछा, और सीधा शादी कर के आ गयी, मेरे कितने अरमान थें, तुम्हें डोली में बिठाऊ, चाँद, तारों की तरह तुम्हें सजाऊ, ऐसी धूमधाम से शादी करूँ की लोग बोल पड़े वो देखों शर्माजी जिन्होने अपनी बच्ची को इतने नाजों से अकेले पाला हैं, पर तुमने मेरे सारे ख्वाब तोड़ दियें, “खैर” इन सब बातों का कोई मतलब नही हैं,
मैंने तो तुम्हारें लिए खत इसलिए छोड़ा है की कुछ बात सकूं…………………

मेरी “गुड़िया” आलमारी में तुम्हारी माँ के गहने और मैंने जो तुम्हारी शादी के लिए गहने खरीदें तो वो सब रखें हैं, तीन चार घर और कुछ जमीने है मैंने सब तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के नाम कर दी हैं, कुछ पैसें बैंक में है तुम बैंक जाकर उसे निकाल लेना,
“_और आखिरी में बस इतना ही कहूंगा गुडिया काश तुमने मुजे समझा होता मैं तुम्हारा दुश्मन नही था, तुम्हारा पापा था, वो पापा जिसने तुम्हारी माँ के मरने के बाद भी, दूसरी शादी नही की लोगो के ताने सुने, गालियाँ सुनी, ना जाने कितने रिश्तें ठुकराय पर तुम्हें दूसरी माँ से कष्ट ना हो इसलिए खुद की ख्वाहिशें मार दी…………………..

अंत में बस इतना ही कहूंगा मेरी गुड़िया, जिस दिन तुम शादी के जोड़े पर घर आयी थी ना, तुम्हारा बाप पहली बार टूटा था, तुम्हारे माँ के मरने के वक्त भी उतना नही रोया जितना उस वक्त और उस दिन से हर दिन रोया इसलिए नही की समाज_जात_परिवार_रिश्तेदार क्या कहेंगें,,,
इसलिए वो जो मेरी नन्ही सी गुड़िया सु_सु तक करने के लिए, सारी रात मुजे उठाती थी, पर जिसने शादी का इतना बड़ा फैसला लिया पर मुजे एक बार भी बताना सही नही समझा, गुड़िया अब तो तुम भी माँ हो औलाद का दर्द खुशी सब क्या होता हैं, वो जब दिल तोड़ते हैं तो कैसा लगता हैं, ईश्वर तुम्हें कभी ना ये दर्द की शक्ल दिखाए, एक खराब पिता ही समझ के मुजे माफ कर देना मेरी गुड़िया, तुम्हार पापा अच्छा नही था, जो तुमने उसे इतना बड़ा दर्द दिया, अब खत यही समाप्त कर रहा हूं, हो सकें तो माफ कर देना, और खत के साथ एक ड्राइंग लगी थी जो खुद कभी पूनम ने बचपन में बनाई थी, और उसमें लिखा था आई लव यू मेरे पापा मेरे हिरो मैं आपकी हर बात मानूंगी, ………………..

पूनम रो ही रही थी, उतने में उसके ताऊजी आ गयें, पूनम ने उन्हें रोते_रोते सब बताया, पर एक बात उसके ताऊजी ने बताई, उसके ताऊजी ने कहा, पूनम वो जो तुम्हें रेस्टोरेंट खोलने और घर खरीदने के पैंसे मैंने नही दियें थें, वो पैंसे तुम्हारे पिताजी ने मुजसे दिलवाए थें, क्यूकि औलाद चाहें कितनी भी बुरी, माँ_बाप कभी बुरे नही होतें, औलाद चाहें माँ_बाप को छोड़ दे माँ_बाप मरने के बाद भी अपने बच्चों को दुआ देते हैं,
दोस्तों पूनम के पापा को सुकून मिलेगा या नही मुजे नही पता, पर उस खत को पढ़ने के बाद, शायद सारी जिंदगी, पूनम को सुकून नही मिलेंगा …..🔚

➡_बस इतना ही कहूंगा, आखिर में दोस्तों, लव मैरिज शादी करना कोई गलत बात नही, पर यही अपने माँ_पिताजी की मर्जी शामिल कर लें, पत्थर से पानी निकल जाता हैं, वो तो माँ_बाप है ना कब तक नही टूटेंगें अपने बच्चों की खुशी के लिए, हर बाप की एक इच्छा होती हैं अपनी बेटी को अपने हाथों से डोली में विदा करने की हो सकें तो उसे एक सपना मत रहने दीजिए।

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जला पतीला और बहू का चरित्र…..

बीस दिन से छोटी बहू सास की सेवा के लिए प्रस्तुत थी,अपना हर काम मनोयोग से करने की चेष्टा करती थी।हालांकि वह जिस घर से थी,वहां काम तो था,पर आधुनिक तौर तरीको वाला,और यहाँ सर्वथा भिन्न।बेचारी मुरझा गई थी,पर जेठानी की प्रसूति के अब 11 दिन हुए थे,तो उनकी देखरेख भी करती थी।पर गांव का कठिन तौर तरीको वाला काम,उसपर भारी पड़ रहा था,करती जाती इस बीच भूख लगकर खत्म हो जाती।खाना भी नहीं खाया जाता,कपड़े धोने बैठती तो साड़ी सारी ही गीली हो जाती।फिर बदलती,फिर गीली होती,बर्तन भी बैठकर धोने होते, पल्लू सम्हालती नीचे से भीग जाती।
मोरी भी बाहर थी,जहाँ बैठक का कमरा वहीं आंगन।वह सोचती कोई नहीं हो तब तक काम निपटा ले..पर गांव का घर व्यवहारिकता कुछ ज्यादा ही थी।किसी तरह जल्दीबाजी करती,क्योंकि घूंघट लेकर उससे काम ना होता और अगर किसी के सामने गिर जाए तो सास तो काली का रुप हो जाती थी।वह वैसे भी सीधी साधी और सरल थी,मुंहजोरी करना नहीं जानती थी।तो बहस की कोई गुजांइश ना रखती।यद्यपि नवाचार से पूर्णतया शिक्षित थी।
पढ़ाई लिखाई और दूसरे गुणों की यहां कोई कद्र ना था,काम में कोताही ना हो,ढेर सारा काम करो औरतजात हो।सिलाई कढ़ाई क्यों नहीं आती,।यहां सबको सीखना होता है,फाल पीको करना सीखों।अपनी सास ननद की साड़ियां तैयार करना।बैठ कैसे गई, औरतजात हो।
चलिए ये तो आए दिन की बात थी,ये झाड़ू चलाना सीखों,ऐसे नहीं।जो पारंपरिक पुराना झाड़ू होता था..वो ही मिलता वहां पर जिसे चलाने में उसे हमेशा फांस चुभती,या ज्यादा काम करने से छाले पड़ जाते,फिर भी जेठानी की खातिर सब किए जाती।
एक दिन जेठानी जी,दलिया चढ़ाकर भूल गई, पूरा पतीला जल गया।छोटी बहू से साफ नहीं हुआ।दो चार बर्तन और रह गए थे,खाना बनाकर साफ करने ही जा रही थी कि सास और एक रिश्तेदार आ गए, वह ठिठककर रुक गई,कि अब कैसे धोऊं बर्तन।
इतने में जला पतीला देख सास का,तो गुस्सा फूट पड़ा,ये देखो बर्तन जला दिया,और सारे बर्तन भी साफ ना हुए,देख रहे हो नेमीचंद।मेरे बिना मेरा घर।बर्तन उठाकर फेंकने लगी,बहू घबरा गई, सारा दोषारोपण उस पर हो गया, ये आजकल की लड़कियाँ बर्तन कहाँ साफ करती है,नेमीचन्द बोले, अरे इन्हें तो आए दिन रेस्टोरेंट में खाने का शौक होगा,फैशन है आजकल का।ये घुमक्कड़ चरित्र की लड़कियां क्या जाने मर्यादा।कामकाज की तो पूछो मत।(इन्ही नेमीचंद के घर में अनपढ़ सास बहुओं की रोज लड़ाई होती)
जला पतीला छोटी बहू को मुंह चिढ़ा रहा था कि देखो तुम्हारा चरित्र चित्रण हो गया,पिछले दस-पंद्रह दिनों के सहयोग को भुलाकर उसका ऐसा अपमान किया,सारी रात रोती रही।
अगले ही दिन अपना सामान बांधकर निकल ली,मैं तो घुमक्कड़ जात हूंँ, मांजी।ज्यादा दिन एक जगह नहीं रहती।आप सम्हालें, अपना साम्राज्य।
तो देेेेखा आपने किस तरह एक जले पतीले ने बहू का चरित्र निर्धारित कर दिया,जो उसने नहीं जलाया था।वैसे चरित्र चित्रण किस का हुआ यहां पर..जरा सोचिये”

खामोश राखी…….

कोई भी उसे दिल से विदा नहीं करना चाह रहा था। सबकी आँखों में आँसू थे। गीता और रिमझिम दोनों बहनें उससे लिपटकर पूछ रही थीं।‘ भैया अब कब आओगे?’ जबाब में वह रूंधे कण्ठ से न तो कुछ बोल पा रहा था न ही अपने आँसुओं को रोक पा रहा था। माँ की स्थिति तो निरीह गाय की तरह थी। बस हृदय में असीम वेदना व आँखों में आँसू लिए रवि को ंिकंकर्तव्य विमूढ़ होकर निहार रही थी। वह भी रवि को जाने नहीं देना चाह रही थीं। लेकिन फौजी पति से किये गये वादों के प्रति वफादार होकर हृदय को वज्र बना चुकी थी। वैसे पहले से ही फौजी पति के शहीद होने का गम जीवन में कम न था। विमला देवी हाल्ट स्टेशन पर पुत्र को विदा करने लिए ट्रेन की प्रतीक्षा में खड़ी थी। फौज में प्रशिक्षण के बाद रवि अपनी पहली तैनाती पर जम्मू जा रहा था। रवि को फौजी ड्रेस में देख विमला देवी के सामने पति की यादें पुनः सजीव होने लगतीं, उसका कलेजा काँप उठता था। पति की यादें तो उसके जीवन की हिस्सा बन गयी थीं। उनके दिलो-दिमाग में पति की यादों ने ऐसा घर बना लिया था कि रवि को पलकों से दूर करने में वह हमेशा डरतीं थीं। माँ का दिल मोम की तरह पिघल रहा था। बार-बार रवि को समझाते हुए विमला देवी के होंठ व पलकें काँप रही थीं। रवि भी बार-बार माँ को समझाना चाह रहा था लेकिन वह भी भावों के अलावा स्वर से समर्थ न था। माँ-बेटे एक दूसरे के आँसू व भाव समझ रहे थे। शाम का समय। छोटा स्टेशन होने के कारण मेन रूट की सारी ट्रेनें सायं से निकल जाती थीं। केवल लोकल ट्रेनें ही रूकती थीं, इसलिए स्टेशन पर बहुत भीड़ की भी स्थिति नहीं थी। सिग्नल मैन ने डाऊन में ट्रेन आने की घंटी बजायी। सबका ध्यान बँटा, सबने सामान समेटा। ट्रेन आती दिखाई दी। माँ ने रवि के आँसू पोछते हुए एक बार फिर गले लगाया।

गले लगाते ही माँ के आँसुओं की धार तेज हो गयी। ट्रेन आकर खड़ी हुई। कुछ लोगों ने रवि का सामान रखने में मदद की। रवि ने झुक कर माँ का चरण स्पर्श किया। विदाई के क्षण और भी करीब हो गये। रिमझिम व गीता ने रूकते-रूकते हुए कहा -‘भइया रक्षाबन्धन पर जरूर आना, नहीं तोे हम किसे राखी बाँधेंगे?’ इन प्रश्नों का उत्तर रवि सिर्फ सर हिला कर ही दे सका। ट्रेेन ने सीटी दी और धीरे- धीरे गति तेज हुई। देखते ही देखते सब लोग आँखों से ओझल हो गये। रवि ने बेेडिंग को एक तरफ खिसकाया और बर्थ पर बैठ गया। खिड़की से ट्रेन की गति का आभास हो रहा था। पेड़-पौधे पीछे छूटते चले जा रहे थे। रवि सोचने लगा कि ऐसी क्या मजबूरी है जिसने हमंे आज माॅ और बहनों के प्यार से दूर कर दिया। क्या पैसा कमाना इतना जरूरी है? क्या कम खर्चे में काम नहीं चल सकता ? तमाम सवालों से वह जूझ रहा था। उसकी आँख फिर भर आयी लेकिन इस प्रश्न का जबाब उसे अपने पिता के आदर्शों में स्वयं मिल गया। उसकी आत्मा ने जबाब दिया ‘पैसे से बढ़कर देश सेवा का अवसर, राष्ट्र के प्रति कर्तव्य का समर्पण का सौभाग्य सभी को नहीं मिलता।’ दूसरे दिन तड़के रवि अपने यूनिट पहुँच गया, उसने कम्पनी हेड क्वार्टर में रिपोर्ट किया। नये साथियों ने रवि का खुशी से स्वागत किया। धीरे-धीरे रवि का ध्यान नये दोस्तों में बँट गया लेकिन वह माँ का प्यार व बहनों से रक्षा बन्धन पर आने के लिये किये गये वादों को न भुला सका। उसे यह बखूबी याद रहता था। कुछ महीने बाद ही रवि की कम्पनी को हेडक्वार्टर से सीमा पर जाने के लिए आदेश हो गया। रवि अपनी कम्पनी के साथ सीमा पर रवाना हो गया।

सीमा पर आंतकवाद के विरूद्व आपरेशन चल रहा था। सीमा पर रवि की कम्पनी ने कैम्प किया और वह अपनी ड्यूटी पर तैनात हो गया। इलाका इतना खतरनाक था कि हर समय जान का जोखिम रहता था। ऐसे में हर जवान को काफी चैकन्ना रहना पड़ता था। ड्यूटी के अलावा वहाँ अन्य किसी का ध्यान नहीं रहता था परन्तु ड्यूटी पोस्ट से छूटते ही उसे घर की यादें भी अक्सर सताने लगती थीं। रवि कैम्प में आराम कर रहा था, ट्रांजिस्टर खुला हुआ था फिल्मी गानों में एक विशेष गाने ने दस्तक दी। चन्दा रे ओ मेरे भइया से कहना, बहना याद करे… गाना सुनते ही रवि की आँखो में आँसू भर गये और वह घर की यादों में खो गया तभी लाँस नायक हरि सिंह ने कैम्प में प्रवेश किया। उसके हाथों में एक पत्र था। ‘अरे ! रवि क्यों रो रहा है? क्या बात है भाई ? क्या तकलीफ है हमें भी तो बता ?’ ‘देख तू रो रहा है और तेरे घर से खत आया है।’ रवि की आँखों में आँसू देखकर हरि ने कहा…। ‘देखूँ कहाँ है?’ रवि ने हाथ से खत लेना चाहा। ‘नहीं भाई पहले तू हँस फिर मैं दूँगा’ ‘भाई मैं कहाँ रो रहा हूँ’ दोनों हँसने लगे। ‘क्या बताऊँ हरि भाई घर की याद आ गयी थी’ रवि ने कहा। रवि खत पढ़ते-पढ़ते फिर अतीत में खो गया। उसकी आँखों में आँसू भर आए, माँ की याद फिर आने लगी। रिमझिम ने खत में लिखा था। ‘भइया प्रणाम, आपको मालूम हो कि हम लोग यहाँ पर ठीक से हैं। हम लोग आपको बहुत याद करते हैं। माॅँ खाना खाते समय हमेशा आपको याद करती हंै। कहती हैं कि पता नहीं कैसे होगा? कहाँ होगा? खाना खाने में बहुत लापरवाही करता था। जब तक जबरदस्ती न करो सुनता ही नहीं था, मतलब कि भइया माँ की नज़रों में आप हमेशा भूखे ही रहते हैं इसलिए अबकी बार आप खूब मोटे होकर आइयेगा। कमरे में खूँटी पर लगी हुई पापा की पुरानी फौजी तस्वीर को देखकर माँ अक्सर खो जाती है। पूजा करके जब भी उठती हैं उस कमरे में जरूर जाती हैं और रोते हुये ही बाहर निकलती है जैसे पापा से वह खुद बात करती हो। लाख समझाओ पर समझती ही नहीं हंै। भैया आपके प्रति बहुत चिन्तित रहती हैंैं। आपको आशीर्वाद लिखने के लिए बोली हैं। भैया आपको याद है न, रक्षाबन्धन पर आपको घर आना है और मेरे लिए एक गिफ्ट भी लाना है, शेष सब ठीक है। अपना ख्याल रखना। पत्र लिखना बन्द करती हूँ। प्रणाम।’ आपकी बहन रिमझिम। रवि की आँखों के आँसू पत्र पढ़ते-पढ़ते और तेज हो गये। ‘अरे यार मैंने तो घर के समाचार बताने के लिए कहा तुम तो फिर रोने लगे।’ लाँस नायक हरि सिंह ने कहा ‘खैरियत तो है न।’ ‘हाँ सब ठीक है छोटी बहन का पत्र है, उसी की याद आ गई। रक्षा-बन्धन पर बुलाया है’ रवि ने कहा। ‘तो ठीक है कल सी.ओ. साहब भी मुआयना पर आ रहे हैं। छुट्टी की अप्लीकेशन दे दो मंजूर हो जायेगी।’ ‘ओके कल ऐसा ही करता हूँ। कुछ भी हो हरि सिंह, अब राखी तो बहन से बँधवानी ही है।’ रवि ने कहा…. दूसरे दिन रवि ने सी.ओ. साहब को सैल्यूट किया। छुट्टी की अप्लीकेशन देखते ही सी.ओ. साहब ने रवि से, कड़ा रूख अख्तियार करते हुए, कहा – ‘देख रहे हो इस समय बार्डर पर आपरेशन चल रहा है और तुम्हें छुट्टी की पड़ी है। घर में रहना था तो आर्मी क्यों ज्वाइन की, बहुत त्याग करना पड़ता है फौजियों को।’ ‘सर…’ ‘अप्लीकेशन रख दो और ड्यूटी पर जाओ।’ ‘सर…’ ‘देश सेवा से बढ़कर कोई कार्य नहीं।’ ‘सर…’ रवि ने दुःखित भाव से कहा। रवि ने फिर से विनती भरी निगाहों से सैल्यूट किया और वापस चला गया। रवि के जाने के बाद सुबेदार मेजर बी.एस.राठौर ने सी.ओ. साहब से बताया- ‘सर बड़ा भावुक लड़का है। अपने पिता की जगह पर रिक्रूटमेंट लिया है।’ ‘किसका लड़का है?’ ‘सर प्रेम राज साहब का बेटा है। जैसलमेर आर्म्स हेड क्वार्टर में सुबेदार मेजर थे, बाद में स्पोर्ट्स कोटे से प्रोमोशन भी पाये। श्रीनगर की पोस्टिंग के दौरान एक आपरेशन में शहीद…’ कहते कहते राठौर का गला भर गया। ‘अरे वह तो बहुत अच्छा स्पोर्ट्स मैन था। भाई मेरे साथ भी टीम में बैग्लोर गया था वहाँ सेंट्रल कमाण्ड से मैच था।’ ‘खैर इसकी छुट्टी कल रखना, कर देंगे। कब से जाना चाह रहा है।’ ‘सर, रक्षाबन्धन से पहले।’ सूबेदार मेजर बी.एस. राठौर ने कहा। रवि दुखी होकर जा चुका था लेकिन उसके मन में सी.ओ. साहब की बात क्लिक कर गयी थी। देश सेवा से बढ़कर कोई सेवा नहीं, उसका मनोबल और बढ़ गया। कम्पनी हेड क्वार्टर से तुरन्त बार्डर पोस्ट पर जा पहंुचा और ठान लिया कि अब देश सेवा करके ही दिखाऊँगा, जब तक सी.ओ. साहब स्वयं बुलाकर छुट्टी जाने के लिए नहीं कहेगें तब तक नहीं जाऊँगा। वक्त ने करवट ली एक सप्ताह ही अभी गुजरे होंगे कि अचानक रात्रि में हेड क्वार्टर के वायरलेस और टंªकाल घनघना उठे, दुश्मन की टुकड़ी ने पोस्ट फोर पर हमला कर दिया था। कम्पनी हेड क्वार्टर से तुरन्त आदेश आया कि पोस्ट टू के जवान तुरन्त पोस्ट फोर के जवानों को सहायता पहुॅचायें। रवि पोस्ट टू पर ही तैनात था। उसने जवानों के साथ पोस्ट फोर पर तत्काल पहुँच कर मोर्चा सँभाल लिया। छत्तीस घंटे तक लगातार गोलीबारी चलती रही दुश्मन अपने आप को परास्त होते देख मैदान छोड़ कर भागने लगे। रवि ने बहुत ही जाँबाजी के साथ दुश्मनों का मुकाबला किया। वायरलेस सेट पर रवि की जाँबाजी के कारनामे कम्पनी हेड क्वार्टर पर संदेशों में पहुँचने लगे। पूरा आपरेशन सफल रहा परन्तु कैम्प के कुछ जवान जो लड़ते-लड़ते दूर जा चुके थे वे अभी वापस नहीं आ पाये थे। सुबह होते ही कैम्प की सर्चिंग टीम आगे बढ़कर अपने जवानों को ढूँढ़ रही थी। सी.ओ. साहब ने दूसरे दिन कार्यालय में आते ही रवि की छुट्टी स्वीकृत कर पोस्ट-टू पर भेज दिया और रात्रि में हुए हमले का जायजा लेने लगे। पोस्ट-टू पर अन्य डाक के साथ रवि की स्वीकृत छुट्टी लेकर संदेशवाहक अभी पहंँुचा भी न था कि वायरलेस सेट पर किसी जवान की बिलखती हुई धीमी आवाज आयी। ‘दुश्मन पोस्ट छोड़कर भाग गये हैं लेकिन रवि को गोली लग गयी है और वह…।’ ‘हाँ… और वह… क्या…?’ सी0ओ0 साहब ने उत्सुकता से पूछा। ‘सर… वह…’ की आवाज के साथ वायरलेस सेट खामोश हो गया। सी0ओ0 साहब भी समझ गये और दुःख की गहरी साँस लेकर अपने माथे को टेबल पर टिका दिया। उनकी आँखों में आँसू आ गये अपने जवान को खोने का गम उनके ऊपर भारी पड़ रहा था। रक्षा बन्धन पर छुट्टी माँगने आये रवि का चेहरा उनकी आँखों के सामने नाच रहा था। रवि का पार्थिव शरीर कंपनी हेडक्वार्टर लाया गया जिसे देखते ही जवानों का दिल भर उठा। गम के माहौल में रवि को तिरंगा के साये में शोक सहित सलामी दी गयी। बाद में सी0ओ0 साहब ने सुबेदार मेजर राठौर को बुला कर कहा – ‘राठौर देखो हम लोग इस समय गहरे संकट से गुजर रहे हैं। जीत की खुशी से कहीं ज्यादा गम अपना एक अच्छा साथी खोने का है। मंै चाहता हूँ शहीद रवि का शव उसके परिजनों तक आप लेकर जायें।’ ‘नहीं सर, क्षमा चाहंँूगा मुझसे यह नहीं होगा क्योंकि यह बूढ़ा शरीर साथियों का शव ढोते-ढोते थक चुका है। इसके पिता को भी मैं ही लेकर गया था। इसके माँ के हालात मैंने देखे थे वह पागल हो गयी थी। रवि उस समय काफी छोटा था। हमसे यह काम मत करवाइये साहब, प्लीज।’ ‘राठौर प्लीज आप समझने की कोशिश कीजिए। हम लोगों में आप ही एक अनुभवी एवं पुराने अधिकारी हैं। परिजनों को आप समझा सकते हैं, सान्त्वना दे सकते हैं। यह समय संयम से काम लेने का है।’ अंततः सूबेदार मेजर राठौर, लाँस नायक हरि सिंह अपनी गारद के साथ रवि के शव को लेकर उसके गाँव के लिए रवाना हुए दूसरे दिन शव लेकर पहुँचे। परन्तु किसी की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि उसके घर यह शोक संदेश दे। देखते ही देखते यह खबर गाँव में फैल गयी। गाड़ी के पास लोगों की भीड़ लग गयी, सभी हैरत में थे। रवि का शव अभी गाड़ी में ही था। गाड़ी से उतर कर राठौर और हरि सिंह रवि के घर पहुँचे। हरि सिंह को देखकर रिमझिम व गीता खुशी के मारे खिल उठीं। दौड़ कर माँ के पास गयीं और बोलीं-‘माँ भइया आ गया देखों मैंने कहा था न, भइया रक्षाबन्धन के दिन जरूर आयेगा। हमें पूरा विश्वास था। अब देखो एक भाई के बजाय कई फौजी भाई आये हैं।’ खुशी के मारे दोनों बहनें राठौर और हरि सिंह से लिपट कर बोलीं- ‘भइया कहाँ हैं? भइया अभी पीछे होंगे, मै जानती हूँ कि वह शरारती हैं न, इसीलिए पीछे छिपा होगा।’ कह कर बाहर गाड़ी की तरफ दौड़ गयीं। रिमझिम और गीता को क्या पता था कि आज हरि सिंह और राठौर का आना खुशी की जगह मातम में बदल जायेगा। भइया इस हालत में राखी बँधवाने आयेगा। राखी की थाली और दीपक, गीता के हाथों से अचानक छूट गयी। बिमला देवी की ज़िन्दगी फिर से काली रात में बदल गयी जो मंजर उन्होंने बहुत साल पहले देखा था आज वही मंजर फिर सामने था। जवानों के आँखो से आँसू देख बिमला देवी को फिर से उन्मादी तूफान का एहसास हो गया और वह पागलों की तरह झकझोर कर राठौर से पूछने लगी। ‘बताओ मेरा बेटा कहाँ है?’ ‘बताओ मेरा बेटा कहाँ है? अगर मेरे बेटे को कुछ हो गया तो मैं किसी को नहीं छोडूँगी। हे भगवान! यह क्या हो गया?’ बिमला देवी दौड़ कर पागलों की तरह रवि के शव से लिपट गयीं, उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था। ‘नहीं ऐसा नहीं हो सकता है, मेरा बेटा रवि ऐसे नहीं सो सकता।’ पूरा मुहल्ला गम में डूब गया। रिमझिम और गीता रो-रो कर कह रही थीं- ‘बताओं हम किसे भइया कहेंगे, किसे राखी बाँधेंगे?’ दोनों बहनों की बात सुनकर हरि सिंह भी रो रहे थे परन्तु वेदना में कुछ कह पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। विमला देवी और बहनों के विलाप को देखकर कर सभी रो रहे थे। शोक संवेदना में जिले के डी0एम0 और एस0पी0 भी आ चुके थे। तिरंगे में लिपटे हुए रवि के शव से डी0एम0 साहब ने बहनों को हटाने की कोशिश की। रिमझिम चिल्ला रही थी। ‘मैं किसे राखी बाधूँगी? आप सब लोग हट जाइये।’ उसका क्रंदन समूचे माहौल को कारूणिक बना रहा था। अन्त में लाँस नायक हरि सिंह नें रिमझिम को पकड़ा और रोते हुए कहा- ‘बहन रवि को राखी बँधवाने की काफी इच्छा थी। वह हमसे भी तुम्हारी बातंे करता था। हमारा निवेदन है कि मेरे दोस्त को देश ने वीर चक्र प्रदान किया है अब तुम भी इसे राखी प्रदान कर दो तभी मेरे शहीद भाई की आत्मा को शांति मिल सकेगी।’ डी0एम0 साहब की आँखों में भी आँसू भर गये।‘ बहन तुम्हारी यह राखी हम जवानों के लिए गौरवपूर्ण राखी होगी और वीर चक्र विजेता रवि को श्रद्वांजलि।’ वीर भाई की साहसी बहनों ने संकट की घड़ी में भी अपने धैर्य का परिचय दिया और भाई की कलाई को खामोश राखी से सजाया। नियति ने आज यह तय कर दिया कि भाई के हाथ में आज उनकी अन्तिम राखी होगी। राखी का थाल अब कभी नहीं सजेगी। रिमझिम की थाली के दीपक खामोश होते ही यह त्यौहार इनके जीवन से जुदा हो गया। सबकीे आँखों से आँसू की बरसात हुई, सबका दिल रोया। डी0एम0साहब व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों ने ससम्मान रवि को सलामी दी व तिरंगा झुका कर सबने आँखें बन्द कर श्रद्धाँजलि दी। राखी बँधवाकर रवि का शव पंचतत्व में विलीन हो गया। माॅँ अपने सहारे को खोकर फूट-फूट रो तो रही थीं पर उन्हें देश पर समर्पित बेटे के ऊपर गर्व भी था। लोगों ने वतन पर शहीद होने वाले सैनिक एक की संवेदना भरी राखी के त्यौहार को असामान्य रूप से आँखों मंे आंँसू भर कर देखा जो चुप रहकर बहुत कुछ कह गयी क्योंकि वह राखी नहीं खामोश राखी थी……।