​उम्मीद जिन्दा रख ……

ज़मीर ज़िंदा रख,

कबीर ज़िंदा रख,

सुल्तान भी बन जाए तो,

दिल में फ़क़ीर ज़िंदा रख,

हौसले के तरकश में,

कोशिश का वो तीर ज़िंदा रख,

हार जा चाहे जिन्दगी मे सब कुछ,

मगर फिर से जीतने की वो उम्मीद जिन्दा रख,

बहना हो तो बेशक बह जा,

मगर सागर मे मिलने की वो चाह जिन्दा रख,

मिटता हो तो आज मिट जा इंसान,

मगर मिटने के बाद भी इंसानियत जिन्दा रख।

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वैद्य मामा ने भगाया भूत …..

एक दिन मैं मामा जी से मिलने गया तो वैद्य मामा भी वहीं बैठे थे। दोनों में इस विषय पर वार्तालाप चल रहा था कि लोगों पर जो भूत-प्रेत चढ़ आते हैं उन का क्या इलाज है? 

मामा जी ने मेरे नाना द्वारा भूत उतारने के किस्से सुनाए। काशी गुरुकुल से विद्या प्राप्त वैद्य मामा कहाँ पीछे रहने वाले थे। उन्हों ने भी एक किस्सा छेड़ दिया। यह किस्सा मुझे इस लिए भी स्मरण रहा क्यों कि यह उस औरत पर से भूत उतारने से संबद्ध था जो उस मकान में रहती थी जिस के पास के मकान में मैं पैदा हुआ था।

उस औरत को अचानक भूत चढ़ने लगा। पहले पहल ऐसा महिने, दो महिने में हुआ करता था। फिर आवृत्ति बढ़ती गई। भूत महाराज सप्ताह में दो-तीन बार आने लगे। घर वाले परेशान। एक दिन औरत पर भूत चढ़ा हुआ था कि औरत गली में निकल आई। वैद्य मामा उधर से गुजर रहे थे। उन्होंने वैसे ही पूछ लिया यह क्या हो रहा है? उन की पूरे मोहल्ले पर ही नहीं पूरे इलाके में धाक थी। उस महिला के पति ने वैद्य मामा से कहा कि ‘इसे पिछले चार पांच महिने से भूत चढ़ता है। पहले तो दस-पांच मिनट में उतर जाता था। पर अब तो एक-एक घंटा हो जाता है और सप्ताह में दो-तीन बार चढ़ जाता है। आप के पास कोई इलाज/उपाय हो तो बताएँ। वैद्य मामा सोच में पड़ गए। थोड़ी देर बाद कहा कि इसे किसी तरह मकान के अंदर कमरे में ले चलो और एक धूपेड़े (हनुमान जी, माताजी और भैरव मंदिरों में धूप जलाने के लिए रखा जाने वाला मिट्टी का डमरू के आकार का बरतन) में कंडे जला कर रखें।

पति कुछ लोगों की मदद से भूत चढ़ी पत्नी को जैसे-तैसे अपने मकान के कमरे तक ले गया। कुछ ही देर में मामा वैद्य जी वहाँ पहुँच गए। उन्हों ने कमरे का निरीक्षण किया कमरे में हवा-रोशनी आने के लिए दरवाजे के अलावा केवल एक खिड़की थी। उन्हों ने खिड़की को बंद करवा दिया। तब तक धूपे़ड़े में जल चुके कंडे आग में बदल चुके थे। वैद्य जी ने उस आग में कुछ डाला तो तेज गंध आई। वैद्य जी ने सब को कमरे से बाहर निकाला और धूपेड़ा कमरे में ले गए। औरत जोर से चिल्लाने लगी -मुझे कौन भगाने आया। मैं न जाउँगा। मिनट भर बाद ही एक कागज की पुड़िया में से कोई दवा उन्हों ने धूपेड़े में डाली और फौरन कमरे से बाहर आ कर दरवाजे के किवाड़ लगा कर कुंडी लगा दी। अंदर से औरत के चिल्लाने की आवाजें आईँ। फिर वह जोरों से खाँसने लगी। फिर उस के खाँसने की आवाज भी बंद हो गई। वैद्य जी ने तुंरत लोगों को दूर जाने को कहा और किवाड़ व खिड़की खोल दी। अंदर से बहुत सा धुँआ निकला। जो भी उस की चपेट में आया वही खाँसने लगा। औरत अचेत पड़ी थी। वैद्य जी ने उस औरत के पति को कहा कि उसे खुले में ले आएँ। कुछ देर में यह ठीक हो जाएगी। तभी औरत ने आँखें खोली और सामान्य हो गई। लोगों को देख घूंघट कर लिया। उस का भूत उतर चुका था।

वैद्य मामा ने जब किस्सा सुना चुके तो मैं ने पूछा आखिर आप ने किया क्या था? कहने लगे -मैं ने बस थोड़ा सा लाल मिर्चों का पाऊडर धूपेड़े में डाला था। जिस के धुँए से औरत बेहाल हो कर बेहोश हो गई। होश में आई तो उस का भूत उतर गया था।-और उस औरत को कुछ हो जाता तो? मैं ने पूछा।मैं वहीं था। इलाज कर देता।फिर कभी उस औरत को भूत चढ़ा या नहीं? मैं ने जिज्ञासावश पूछा।वैद्य मामा ने बताया कि भूत तो फिर भी उस पर चढ़ता था। लेकिन तभी जब मैं गाँव में नहीं होता था। शायद भूत मुझ से डर गया था।

सच्चा हिरा 

सायंकाल का समय था | सभी पक्षी अपने अपने घोसले में जा रहे थे | तभी गाव कि चार ओरते कुए पर पानी भरने आई और अपना अपना मटका भरकर बतयाने बैठ गई |

इस पर पहली ओरत बोली अरे ! भगवान मेरे जैसा लड़का सबको दे | उसका कंठ इतना सुरीला हें कि सब उसकी आवाज सुनकर मुग्ध हो जाते हें |

इसपर दूसरी ओरत बोली कि मेरा लड़का इतना बलवान हें कि सब उसे आज के युग का भीम कहते हें |

इस पर तीसरी ओरत कहाँ चुप रहती वह बोली अरे ! मेरा लड़का एक बार जो पढ़ लेता हें वह उसको उसी समय कंठस्थ हो जाता हें |

यह सब बात सुनकर चोथी ओरत कुछ नहीं बोली तो इतने में दूसरी ओरत ने कहाँ “ अरे ! बहन आपका भी तो एक लड़का हें ना आप उसके बारे में कुछ नहीं बोलना चाहती हो” |

इस पर से उसने कहाँ मै क्या कहू वह ना तो बलवान हें और ना ही अच्छा गाता हें |

यह सुनकर चारो स्त्रियों ने मटके उठाए और अपने गाव कि और चल दी |

तभी कानो में कुछ सुरीला सा स्वर सुनाई दिया | पहली स्त्री ने कहाँ “देखा ! मेरा पुत्र आ रहा हें | वह कितना सुरीला गान गा रहा हें |” पर उसने अपनी माँ को नही देखा और उनके सामने से निकल गया |

अब दूर जाने पर एक बलवान लड़का वहाँ से गुजरा उस पर दूसरी ओरत ने कहाँ | “देखो ! मेरा बलिष्ट पुत्र आ रहा हें |” पर उसने भी अपनी माँ को नही देखा और सामने से निकल गया |

तभी दूर जाकर मंत्रो कि ध्वनि उनके कानो में पड़ी तभी तीसरी ओरत ने कहाँ “देखो ! मेरा बुद्धिमान पुत्र आ रहा हें |” पर वह भी श्लोक कहते हुए वहाँ से उन दोनों कि भाति निकल गया |

तभी वहाँ से एक और लड़का निकला वह उस चोथी स्त्री का पूत्र था |

वह अपनी माता के पास आया और माता के सर पर से पानी का घड़ा ले लिया और गाव कि और निकल पढ़ा |

यह देख तीनों स्त्रीयां चकित रह गई | मानो उनको साप सुंघ गया हो | वे तीनों उसको आश्चर्य से देखने लगी तभी वहाँ पर बैठी एक वृद्ध महिला ने कहाँ “देखो इसको कहते हें सच्चा हिरा”

“ सबसे पहला और सबसे बड़ा ज्ञान संस्कार का होता हें जो किसे और से नहीं बल्कि स्वयं हमारे माता-पिता से प्राप्त होता हें | फिर भले ही हमारे माता-पिता शिक्षित हो या ना हो यह ज्ञान उनके अलावा दुनिया का कोई भी व्यक्ति नहीं दे सकता हें

बदलाव …..

जिन्दगी में बहुत सारे अवसर ऐसे आते है जब हम बुरे हालात का सामना कर रहे होते है और सोचते है कि क्या किया जा सकता है क्योंकि इतनी जल्दी तो सब कुछ बदलना संभव नहीं है 

और क्या पता मेरा ये छोटा सा बदलाव कुछ क्रांति लेकर आएगा या नहीं लेकिन मैं आपको बता दूँ हर चीज़ या बदलाव की शुरुआत बहुत ही basic ढंग से होती है | कई बार तो सफलता हमसे बस थोड़े ही कदम दूर होती है कि हम हार मान लेते है जबकि अपनी क्षमताओं पर भरोसा रख कर किया जाने वाला कोई भी बदलाव छोटा नहीं होता और वो हमारी जिन्दगी में एक नीव का पत्थर भी साबित हो सकता है | चलिए एक कहानी पढ़ते है इसके द्वारा समझने में आसानी होगी कि छोटा बदलाव किस कदर महत्वपूर्ण है |

एक लड़का सुबह सुबह दौड़ने को जाया करता था | आते जाते वो एक बूढी महिला को देखता था | वो बूढी महिला तालाब के किनारे छोटे छोटे कछुवों की पीठ को साफ़ किया करती थी | एक दिन उसने इसके पीछे का कारण जानने की सोची |


वो लड़का महिला के पास गया और उनका अभिवादन कर बोला ” नमस्ते आंटी ! मैं आपको हमेशा इन कछुवों की पीठ को साफ़ करते हुए देखता हूँ आप ऐसा किस वजह से करते हो ?”  महिला ने उस मासूम से लड़के को देखा और  इस पर लड़के को जवाब दिया ” मैं हर रविवार यंहा आती हूँ और इन छोटे छोटे कछुवों की पीठ साफ़ करते हुए सुख शांति का अनुभव लेती हूँ |”  क्योंकि इनकी पीठ पर जो कवच होता है उस पर कचता जमा हो जाने की वजह से इनकी गर्मी पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है इसलिए ये कछुवे तैरने में मुश्किल का सामना करते है | कुछ समय बाद तक अगर ऐसा ही रहे तो ये कवच भी कमजोर हो जाते है इसलिए कवच को साफ़ करती हूँ |

यह सुनकर लड़का बड़ा हैरान था | उसने फिर एक जाना पहचाना सा सवाल किया और बोला “बेशक आप बहुत अच्छा काम कर रहे है लेकिन फिर भी आंटी एक बात सोचिये कि इन जैसे कितने कछुवे है जो इनसे भी बुरी हालत में है जबकि आप सभी के लिए ये नहीं कर सकते तो उनका क्या क्योंकि आपके अकेले के बदलने से तो कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा न |

महिला ने बड़ा ही संक्षिप्त लेकिन असरदार जवाब दिया कि भले ही मेरे इस कर्म से दुनिया में कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा लेकिन सोचो इस एक कछुवे की जिन्दगी में तो बदल्वाव आयेगा ही न | तो क्यों हम छोटे बदलाव से ही शुरुआत करें |

​प्यार में धोखा खाने के बाद खुद को संभालने का मंत्र..

  • Mrs Gunjan

•Breakup Recovery, Love & Rel …

•Breakup Recovery, Love Brea …

अक्सर प्यार में धोखा मिलने पर दिल में दुख के बादल छा जाते हैं। दुनिया की हर ख़ुशी और हर रिश्ते से हम ख़ुद को जुदा कर लेते हैं। हर वक़्त बस दिल में धोखा खाने से दिलो-दिमाग़ परेशान रहता है। न रातों को नींद आती है, न किसी काम को करने मन लगता है। हर पल बस एक सवाल ज़हन में गूँजता रहता है कि क्यों उसने मेरे साथ ऐसा किया? क्या ग़लती थी मेरी? जाने से पहली एक बार मेरी ग़लती तो बता देता! तो शायद मैं अपनी ग़लती सुधार कर उसे पा सकता। लेकिन उसकी लबों की ख़ुशी तो मुझे अंदर ही अंदर तोड़ रही है।

मैं चाह करके भी उसकी यादों से ख़ुद को आज़ाद नहीं कर पा रहा हूँ। शायद इसलिए क्योंकि मैने उसे सच्चा प्यार किया और उसने मेरे साथ सिर्फ़ खिलवाड़ किया। उसके बिन कुछ कहे दूर चले जाने से मेरा हर सपना टूट गया। शायद मेरे प्यार में ही कोई कमी थी जिस वजह से वो मुझे छोड़ गयी।

प्यार में धोखा खाने के बाद क्या…?

आज भी जब मेरे दिन की शुरुआत होती है तो रह रह कर उसका मुझे प्यार से उठाना उसके साथ चाय पीना बहुत याद आता है। आज जब मैं अकेले उसकी यादों में डूबी होकर चाय पीने की कोशिश कर रहा था कि तभी मेरे पड़ोस में रहने को आये नई पड़ोसन मुझसे मिलने आया। और कहने लगी कि मैं अभी कल ही आपके पड़ोस वाले घर में शिफ़्ट हुई हूँ, अकेला बोरियत हो रही थी तो क्या मैं आपके घर चाय पी सकता हूँ। क्योंकि मुझे अकेले चाय पीना पसंद नहीं इसलिए उसे मजबूरी में हाँ कहनी पड़ी। मेरे साथ चाय पीते पीते उसने मुझसे इस तरह बाते कीं जैसे वो मेरे बारे में सब कुछ जान लेगी। लेकिन वो मुझे बातों से हंसमुख और सीरत से ख़ूबसूरत लगी।

अब उसका मेरे घर आना जाना लगा ही रहता है और उससे बातें करना मुझे अच्छा लगने लगा है। उसकी सबसे अच्छी बात है कि उसका लाइफ़ की तरफ़ नज़रिया बहुत सकारात्मक है।

एक दिन वो उसने मुझसे गुमसुम रहने का कारण पूछा। गुम सुम रहने से समस्या हल नहीं होता बल्कि जीवन में हमेशा अच्छा सोचना चाहिए और मुस्कुराना चाहिए। क्योंकि हर मुस्कुराहट और सकारात्मक सोच आपको नया दृष्टिकोण ही नहीं देती बल्कि तनाव मुक्त होकर जीवन जीने की कला सिखाती है।

उस दिन इतना कहकर वो चली गई । मैंने उसकी बातों के बारे में बहुत सोचा और अगली मुलाक़ात में अपने टूटे दिल की सारी बात उसको बता दी। मेरे प्यार में धोखा खाने की पूरी बात सुनकर उसने सिर्फ़ इतना कहा कि किसी के आने या जाने से ज़िंदगी नहीं रुकती है और न किसी धोखेबाज़ को याद करके अपनी ज़िंदगी को बर्बाद करनी चाहिए। जीने का सही तरीक़ा ये है कि बीती बातों को भुलाकर आगे बढ़ते रहना चाहिए। किसी की यादों को अपने पैरों की बेड़ियाँ बनाने की ज़रूरत नहीं है। हर क़दम एक सकारात्मक सोच आपके जीवन को पूरी तरह बदल देगा। आपकी ज़िंदगी पहले से भी अधिक ख़ूबसूरत नज़र आने लगेगी। ग़मों का धुँधलका सकारात्मक सोच सूरज से छँट जाएगा। उसने बताया कि उसे प्यार में कभी धोखा मिला था और उसने सब कुछ भुलाकर ज़िंदगी को नए ढंग से जीने कोशिश की और आज उसकी सकारात्मक सोच से उसकी ज़िंदगी ख़ुशनुमा हो गयी है। इसलिए मुझे भी जीवन में सकारात्मकता का अनुसरण करना चाहिए और ख़ुश रहना चाहिए।

अगर आपने भी प्यार में धोखा खाया है और उससे निकलना मुश्किल लग रहा है तो सकारात्मक रहने की कोशिश कीजिए और मोटिवेशनल चीज़ों से जुड़िए। इससे ज़िंदगी में नई ख़ुशियाँ आएंगी और आप लाइफ़ के हर पल को जी सकेंगे। ज़िंदगी तभी ख़ूबसूरत होती है जब आपकी सोच ख़ूबसूरत होती है।

बहुत शानदार बात ….

गाँव में *नीम* के पेड़ कम हो रहे है घरों में *कड़वाहट* बढती जा रही है !

जुबान में *मीठास* कम हो रही है, शरीर मे *शुगर* बढती जा रही है !

किसी महा पुरुष ने सच ही कहा था की जब *किताबे* सड़क किनारे रख कर बिकेगी और *जूते* काँच के शोरूम में तब समझ जाना के लोगों को ज्ञान की नहीं जूते की जरुरत है।

…..अपना काम स्वयं करो……

चैत्र माह बीत चुका था।
फसल पकने जा रही थी।


रामू किसान के गेहूं भी लहलहा रहे थे।
उस खेत में एक सारसी का घोंसला था।
घोंसले में उसके तीन बच्चे भी रहते थे। वे बच्चे अभी छोटे-छोटे थे। उन्होंने अभी उड़ना नहीं सीखा था।
वह तेजी से बच्चों को उड़ना सिखा रही थी। क्योंकि फसल पाक चुकी थी और किसान कभी भी उसे काटने आ सकता था। वह रोज शाम को किसी अन्य स्थान की खोज में जाती थी। जहां कि वह अपना घोंसला बना सके। एक दिन वह वापस आई।
“चीं, चीं, चीं, मां!” सभी बच्चे रोने लगे।
“क्या हुआ बच्चो?” सारसी ने पूछा।
“मां, आज किसान आया था। वह फसल काटने की बात कर रहा था।” बच्चों ने बताया, “अब हमारा यहां रहना ठीक नहीं।”
“धैर्य रखो बच्चो! पहले यह बताओ कि वह क्या कह रहा था?”
“वह कह रहा था कि फसल पक गई है। अब इसे काटना चाहिए। मैं आज अपने पड़ोसियों से कहूंगा। वह इसे काट देंगे।”
“बेफिक्र रहो बच्चो! उसके पड़ोसी नहीं आने वाले। उनकी फसल भी पक चुकी है। वे अपनी फसल काटेंगे।” सारसी ने कहा। ऐसा ही हुआ। दो दिन बीत गए। कोई उसकी फसल काटने नहीं आया। बच्चे खुश थे। अपनी मां की बात उन्हें सच ही लग रही थी। परंतु अगले दिन किसान आया। उसके साथ उसका बेटा था।
“बेटा फसल अच्छी तरह पक गई है।” किसान कह रहा था, “मैंने पड़ोसियों से कहा था पर कोई भी फसल काटने नहीं आया। आज मैं अपने भाईयों से कहूंगा। वे लोग अवश्य ही हमारी फसल काट देंगे।” इतना कह कर किसान तो चला गया। सारसी के बच्चे सोच में पड़ गए। उन्हें डर लगने लगा। शाम को सारसी वापस आई।
“चीं, चीं, चीं, मां, यहाँ से चलो। किसान आया था। उसके साथ उसका बेटा भी था। अब वह फसल अवश्य कटवाएगा।” बच्चे डर कर बोले।
“बच्चो! बताओ किसान क्या कह रहा था?”
“वह कह रहा था कि पड़ोसी फसल काटने नहीं आये। अब वह अपने भाइयों से कहेगा।” बच्चों ने बताया।, “अब हमें यहां से ले चलो मां। हमें बहुत डर लग रहा है।”
“बच्चों! चिंता मत करो। किसान मूर्ख है। वह व्यर्थ ही अपने भाइयों का भरोसा कर रहा है। वे सब तो अपनी फसल काट रहे हैं। वे अपना काम क्यों छोड़ेंगे। आराम से रहो। डरने की कोई बात नहीं है।” सारसी ने बच्चों को समझाया। बच्चे चुप हो गए। दो-तीन दिन और बीत गए। कोई भी फसल काटने नहीं आया। एक दिन फिर किसान अपने बेटे के साथ आया।
“बेटा, अब तो अनाज झड़कर गिरने लगा है। मेरे भाइयों ने भी मेरी फसल नहीं काटी। इस तरह तो हमें बहुत हानि हो जाएगी।” किसान ने कहा, “अब तो कल से हम स्वयं ही अपनी फसल काटेंगे। दूसरों के भरोसे काम कभी नहीं होता।”
इतना कहकर किसान वापस चला गया। सारसी वापस आ गई।
“मां, मां!” बच्चे डरकर उससे चिपटकर बोले, “आज फिर किसान आया था।”
“बच्चो! तुम बहुत जल्दी डर जाते हो। अच्छा,सारी बात बताओ।” बच्चों ने किसान की सारी बात बताई।
“बच्चों!” सारसी ने कहा, “कल किसान अवश्य फसल काटने आएगा। वह समझ गया है किअपना कार्य स्वयं करना चाहिए। अब तुम लोग भी उड़ सकते हो। हम इस जगह से चल रहे है। मैने एक अन्य सुरक्षित स्थान देख लिया है। चलो।”
सारसी उड़ चली। बच्चे भी अपनी मां के साथ उड़ चले।
सीख : इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपना कार्य स्वयं करो। किसी पर भरोसा करने से काम नहीं होता।

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पप्पू……

​☕ ☕*आज का विचार* ☕☕

*आँसू न होते तो आँखे इतनी खुबसूरत न होती* , 

          *दर्द न होता तो खुशी की कीमत न होती*
 *अगर मिल जाता सब-कुछ केवल चाहने से ही* ,

         *तो दुनिया में ऊपर वालेकी जरूरत ही न होती*  !
                         🍁 पप्पू भाई 🍁
🙏🙏🙏🙏🙏🙏💐💐💐💐💐💐💐🌺🌺🌺🍀🍀🍀🌿🌿🌿

| छोटी बुराई, बड़ी बुराई के लिए रास्ता खोलती है |

नौशेरवां ईरान का बड़ी ही न्यायप्रिय बादशाह था। छोटी सी छोटी चीजों में भी न्याय की तुला उसके हाथ में रहती थी। सबसे अधिक ध्यान वह अपने आचरण पर रखता था।

एक बार बादशाह जंगल की सैर करने गया। उसके साथ कुछ नौकर चाकर भी थे। घूमते-घूमते वह शहर से काफी दूर निकल आए। इस बीच बादशाह को भूख लगी। बादशाह ने सेवकों से कहा कि यहीं भोजन बनाने की व्यवस्था की जाए। खाना वहीं तैयार किया गया। बादशाह जब खाना खाने बैठा तो उसे सब्जी में नमक कम लगा। उसने अपने सेवकों से कहा कि जाओ और गांव से नमक लेकर आओ।
दो कदम पर गांव था। एक नौकर जाने को हुआ तो बादशाह ने कहा, ‘देखो जितना नमक लाओ, उतना पैसा दे आना।’

नौकर ने यह सुना तो बादशाह की ओर देखा। बोला, ‘सरकार नमक जैसी चीज के लिए कौन पैसा लेगा आप उसकी फिक्र क्यों करते हैं?’

बादशाह ने कहा, ‘नहीं तुम उसे पैसे देकर आना।’ नौकर बड़े आदर से बोला, ‘हुजूर, जो आपको नमक देगा, उसके लिए कोई फर्क नहीं पड़ेगा, उल्टे खुशी होगी कि वह अपने बादशाह की सेवा में अपना अमूल्य योगदान दे रहा है।’

तब बादशाह बोला, ‘यह मत भूलो की छोटी चीजों से ही बड़ी चीजें बनती हैं। छोटी बुराई, बड़ी बुराई के लिए रास्ता खोलती है। अगर में किसी पेड़े से एक फल तोड़ता हूं। तो मेरे सिपाही उस पेड़ पर एक भी फल नहीं छोड़ेंगे। मुमकिन है, ईंधन के लिए पेड़ को ही काटकर ले जाएं। ठीक है एक फल की कोई कीमत नहीं होती, लेकिन बादशाह की जरा सी बात से कितना बड़ा अन्याय हो सकता है। जो हुकूमत की गद्दी पर बैठता है, उसे हर घड़ी चौकन्ना रहना पड़ता है।’

Pappu …..

तीन अजब बातों का गजब चमत्कार….

| तीन अजब बातों का गजब चमत्कार |


न्यायप्रिय राजा हरि सिंह बेहद बुद्धिमान था। वह प्रजा के हर सुख-दुख की चिंता अपने परिवार की तरह करता था। लेकिन कुछ दिनों से उसे स्वयं के कार्य से असंतुष्टि हो रही थी। उसने बहुत प्रयत्न किया कि वह अभिमान से दूर रहे पर वह इस समस्या का हल निकालने में असमर्थ था।

एक दिन राजा जब राजगुरु प्रखरबुद्धि के पास गए तो राजगुरू राजा का चेहरा देखते ही उसके मन मे हो रही इस परेशानी को समझ गए। उन्होंने कहा, ‘राजन् यदि तुम मेरी तीन बातों को हर समय याद रखोगे तो जिंदगी में कभी भी असफल नहीं हो सकते।

प्रखरबुद्धि बोले, ‘पहली बात, रात को मजबूत किले में रहना। दूसरी बात, स्वादिष्ट भोजन ग्रहण करना और तीसरी, सदा मुलायम बिस्तर पर सोना।’ गुरु की अजीब बातें सुनकर राजा बोला, ‘गुरु जी, इन बातों को अपनाकर तो मेरे अंदर अभिमान और भी अधिक उत्पन्न होगा।’ इस पर प्रखरबुद्धि मुस्करा कर बोले, ‘तुम मेरी बातों का अर्थ नहीं समझे। मैं तुम्हें समझाता हूं।

पहली बात-सदा अपने गुरु के साथ रहकर चरित्रवान बने रहना। कभी बुरी आदत के आदी मत होना। । दूसरी बात, कभी पेट भरकर मत खाना जो भी मिले उसे प्रेमपूर्वक खाना। खूब स्वादिष्ट लगेगा।

और तीसरी बात, कम से कम सोना। अधिक समय तक जागकर प्रजा की रक्षा करना। जब नींद आने लगे तो राजसी बिस्तर का ध्यान छोड़कर घास, पत्थर, मिट्टी जहां भी जगह मिले वहीं गहरी नींद सो जाना। ऐसे में तुम्हें हर जगह लगेगा कि मुलायम बिस्तर पर हो। बेटा, यदि तुम राजा की जगह त्यागी बनकर अपनी प्रजा का ख्याल रखोगे तो कभी भी अभिमान, धन व राजपाट का मोह तुम्हें नहीं छू पाएगा।’