पूज्य पिताजी, सादर प्रणाम।
चालीसवें जन्मदिन पर आपका बधाई-कार्ड मिला। आपके अक्षर सत्तर साल की उम्र में भी वैसे ही गोल-गोल मोतियों जैसे हैं जैसे पहले होते थे। आपकी हर चिट्ठी को मैंने सहेज कर रखा है, अपने ख़ज़ाने में। ये चिट्ठियाँ मेरी धरोहर हैं, विरासत हैं। भाग-दौड़ भरे जीवन के संघर्षों में कभी अकेला या कमज़ोर पड़ने लगता हूँ तो आपकी चिट्ठियाँ खोल कर पढ़ लेता हूँ। बड़ा सम्बल मिलता है।
पिताजी, उम्र के इस पड़ाव पर आकर पीछे मुड़ कर देखना अच्छा लगता है। आज मैं आपको कुछ बताना चाहता हूँ। कुछ अनकही बातें हैं जिन्हें कहना चाहता हूँ। कुछ अनछुए कोने हैं जिन्हें छूना चाहता हूँ।
पिताजी, मुझे हमेशा इस बात का गर्व रहा कि मुझे आप जैसा पिता मिला। जब मैं छोटा था तो आपने मुझे गहरी जड़ें दीं। जब मैं बड़ा हुआ तो आपने मुझे पंख दिए। आपने मुझे प्रेरित किया कि मैं अपनी आँखों से सपने देखूँ, दूसरों की आँखों से नहीं। जब मैं ख़ुद को ढूँढ़ने की यात्रा पर निकला तो आपने मुझे उम्मीद दी। जब मैं अपनी नियति को पाने निकला तो आपने मुझे उत्साह दिया। आपने मुझे अपने हृदय की आवाज़ सुनना सिखाया। आपने हर सुबह मुझे मुस्कराने की कोई वजह दी। आपने मेरी हर शाम को उल्लास दिया, उमंग दी। आपने मुझे सिखाया कि मुश्किलों के बावजूद यह दुनिया रहने की एक ख़ूबसूरत जगह है।
बचपन में आपने मुझे छोटी-छोटी ख़ुशियाँ दीं। मुझे याद आता है एक बच्चा जो हलवाई की दुकान पर गरम-गरम जलेबियाँ और समोसे खा रहा है। रविवार को रामबाग़ में ग़ुब्बारे उड़ा रहा है। झूलों पर झूल रहा है। तितलियाँ पकड़ रहा है। इंद्रधनुष देख कर किलक रहा है। चिड़िया-घर में जीव-जंतु देख कर देख कर चहक रहा है। पतंगें उड़ा रहा है। कंचे खेल रहा है। जुगनुओं के पीछे भाग रहा है। कबूतरों को दाना डाल रहा है। हर फूल को, कली को सहला रहा है। कुत्ते-बिल्लियों के बच्चों को पुचकार रहा है और उसका पिता उसकी हर ख़ुशी में उसका संगी है, दोस्त है, राज़दार है। रोज़ सुबह कैम्पस में सैर करने जाना, छुट्टी वाले दिन बाग़वानी करना। आपके संग आलू, गोभी, गाजर, मूली, टमाटर और हरी मिर्च उगाते हुए मैं ख़ुद भी उगा-बढ़ा।
पिताजी, आपका पोता अब बड़ा हो गया है। कल आपका ‘ई-मेल अकाउंट’ पूछ रहा था। अपने दादा से इंटरनेट पर ‘चैट’ करना चाहता है। जब मैंने बताया कि दादाजी के पास कंप्यूटर नहीं है तो वह दुखी हो गया।
पिताजी, मैं चाहता हूँ कि अपने बेटे को भी वे छोटी-छोटी खु़शियाँ दूँ जो मैंने आपसे पाईं। वह दस साल का हो गया है पर उसने आज तक पतंग नहीं उड़ाई। गिल्ली-डंडा नहीं खेला। कंचे नहीं खेले। वह आम या जामुन के पेड़ पर नहीं चढ़ा। मैं चाहता हूँ कि वह इन सब के भी मज़े ले। उसका बचपन अधूरा नहीं रहे। पर वह नई ‘जेनरेशन’ का लड़का है जिसे कारें भी ‘सेक्सी’ लगती हैं। वह कम्प्यूटर और मोबाइल फ़ोन पर ‘वीडियो गेम्स’ खेलता है। वह केबल टी. वी. के असंख्य चैनल देख कर बड़ी हो रही पीढ़ी का लड़का है। ‘पोगो’ और ‘कार्टून चैनल’ उसके ‘फ़ेवरिट’ चैनल हैं। उसे ‘मैकडोनाल्ड’ और ‘पिज़्ज़ा हट’ के बर्गर, फ़िंगर चिप्स और चीज़-टोमैटो पिज़्ज़ा अच्छे लगते हैं। उसे हिंदी में एक से सौ की गिनती ‘डिफ़िकल्ट’ लगती है और वह ‘उनासी और नवासी में’ ‘कनफ़्यूज़’ हो जाता है। वह ‘इम्पोर्टेड’ चीज़ों और ‘फ़ौरेन ब्रांड्स’ का दीवाना है।
पिताजी, याद है एक बार छुट्टियों में आप मुझे गाँव में दादाजी के पास छोड़ गए थे क्योंकि मुझे दादाजी बहुत अच्छे लगते थे। मैं उनके साथ गाँव के पास बहती नदी में मछलियाँ पकड़ने जाता था। अक्सर उन्हें जलतरंग बजाते हुए सुनता था। जलतरंग बजाता उनका वह मुस्कराता चेहरा मुझे आज भी याद है। “पापा, जलतरंग को इंग्लिश में क्या कहते हैं?” पत्र पढ़ कर बगल में बैठा बेटा मुझसे पूछ रहा है।
वह टी. वी. पर चल रहा भारत-पाक वन-डे क्रिकेट मैच देख रहा है। सचिन तेंदुलकर ने शोएब अख्तर के बाउंसर पर थर्ड-मैन बाउंड्री के ऊपर से छक्का दे मारा है। बेटा ख़ुशी से झूमते हुए मुझसे पूछ रहा है — “पापा, आप क्रिकेट खेलते थे?”
“नहीं बेटा, मैं पतंगें उड़ाता था। कंचे खेलता था। गिल्ली-डंडा खेलता था। गाँव के पास बहती नदी में चपटे पत्थर से ‘छिछली’ खेलता था” — मैं कहता हूँ।
“पापा, गाँव कैसा होता है? गिल्ली-डंडा को इंग्लिश में क्या कहते हैं?
‘छिछली’ इंग्लिश में क्या होती है?”– बेटा पूछ रहा है ।
पिताजी, मुझे बेटे के बहुत सारे सवालों के जवाब देने हैं, इंग्लिश में।
सहवाग ने सकलैन मुश्ताक़ की गेंद पर छक्का जड़ दिया है। बेटा ख़ुशी से उछलता हुआ पूछ रहा है– “पापा, आप क्रिकेट क्यों नहीं खेलते थे?”
यादों की गली में एक लड़का कटी हुई पतंगें लूट रहा है। उसके एक हाथ में एक लंबी-सी टहनी है और दूसरे हाथ में कुछ लूटी हुई पतंगें। उसके हाथ-पैर धूल से सने हैं पिताजी, पर उसके चेहरे पर विजेता की मुस्कान है। उसकी पीठ जानी-पहचानी-सी लग रही है। एक और कटी हुई पतंग लूटता हुआ वह आँखों से ओझल हो गया है।
एक बार गाँव के पास बहती नदी में मछलियाँ पकड़ते हुए मैंने दादाजी से पूछा था- “दादाजी, आपने कभी भूत देखा है?”
दादाजी मेरे सवाल पर मुस्करा दिए थे।
“दादाजी, आप भूतों से डरते हैं?” मैंने फिर पूछा था।
“भूतों से नहीं, बुरे लोगों से डरना चाहिए।” दादाजी ने कहा था।
“पर मेरा दोस्त कहता है, भूत ख़तरनाक होते हैं।”
मैंने शंका प्रकट की थी।
“बुरे लोग भूतों से ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं।” दादाजी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा था।
“दादाजी, बुरे लोग क्या करते हैं?” मैंने जिज्ञासा प्रकट की थी।
“बुरे लोग पेड़ काट देते हैं। जंगल उजाड़ देते हैं। नदी-नाले गंदे कर देते हैं। इंसानों और पशु-पक्षियों को मार डालते हैं।” कहते-कहते दादाजी का चेहरा गम्भीर हो गया था।
“दादाजी, मैं बड़ा हो कर सभी बुरे लोगों को मार डालूँगा।” मैंने ग़ुस्से से भर कर कहा था। मुझसे दादाजी का गम्भीर चेहरा देखा नहीं गया था। दादाजी तो मुस्कराते हुए ही अच्छे लगते थे।
“बुरे लोगों को नहीं, बुराई को मारना, बेटा।” मेरी बात सुनकर दादाजी मेरी पीठ थपथपा कर मुस्करा दिए थे।
“बेटा, दूध पी लो। हार्लिक्स मिला दिया है।” आपकी बहू रसोई में से आवाज़ लगा रही है।
“मौम, ब्रेक के बाद।” क्रिकेट मैच देखने में व्यस्त बेटा जवाब दे रहा है। “नाउ वी टेक अ शार्ट ब्रेक।” स्टार स्पोर्ट पर एक मशहूर कमेंट्रेटर बोल रहा है। अब कोका कोला पीती कुछ अधनंगी लड़कियाँ बेशर्मी से कूल्हे मटका रही हैं। क्या ज़माना आ गया है।
पिताजी, इच्छा तो थी कि एक बार बेटे को भी उसके परदादा के गाँव लेकर जाता। कहता– “देख, यहाँ तेरे पापा के दादाजी रहते थे।” उसे गाँव के खेत-खलिहान दिखाता। भूसे के ढेर दिखाता। गाँव के पास बहती नदी में वह भी मछलियाँ पकड़ता। वह भी गाँव के आम, अमरूद, जामुन और इमली के पेड़ों पर चढ़कर उनके फल खाता। बेटे को गाँव की बोली सिखाता। उसे गाँव के बड़े-बूढ़ों से मिलवाता। उसे गाँव के मंदिर में ले जाता। वह भी गाँव के कुएँ पर नहाता। पर अब न गाँव रहा, न दादाजी।
पिताजी, अच्छा हुआ दादाजी पहले चले गए। उन्होंने गाँव के पास बहती नदी पर बाँध बनने के बाद गाँव को जलमग्न होते नहीं देखा। उन्होंने नदी के उस पार उगे घने जंगल को कटते हुए नहीं देखा। उन्होंने अच्छे लोगों के भेस में बुरे लोगों को नहीं देखा। अच्छा हुआ दादाजी पहले चले गए। वे यह सब नहीं देख पाते।
पिताजी, इस बार छुट्टियों में मैं आप के पोते को आपसे मिलाने लाऊँगा। मैं चाहता हूँ कि वह भी अपने दादाजी के पास रहे। उनसे ढेर सारी कहानियाँ सुने। उसे बताइएगा कि कैसे एक बार एक बैंक के कैशियर ने ग़लती से मुझे ज़्यादा रुपए दे दिये थे तो आप मुझे अपने साथ लेकर बैंक गए थे और आपने वे रुपए उस कैशियर को वापस लौटा दिए थे। उसे बताइएगा कि ऐसा करना बेवक़ूफ़ होने की निशानी नहीं है, बल्कि अपनी निगाहों में गिरने से बचना है। उसे अंतरात्मा की आवाज़ सुनना सिखाइएगा। उसे बताइएगा कि किसी चीज़ का केवल विदेशी या ‘इम्पोर्टेड’ होना ही उसके अच्छे होने की निशानी नहीं है। वह आप की बातें ज़रूर समझ जाएगा।
आपकी बहू खाना खाने के लिए आवाज़ दे रही है। बैंगन का भरता और अरहर की दाल बनी है। आप होते तो कहते — “वाह, क्या खाना है।” आपको ये दोनों चीज़ें कितनी अच्छी लगती हैं। आप साथ होते हैं तो लगता है जैसे सिर पर किसी बड़े-बुज़ुर्ग का साया है।
आपको याद करता-Pappu gold
Awesome
Kyaa thinking h aapki
dill ko chu gyi aapki ek ek line
most beautiful and perfect letter to the father..
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Thank-you Hema ji
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